Thursday, 27 July 2017

बुढ़ापे का दर्द

बुढ़ापे का दर्द 


बचपन और बुढ़ापा एक जैसा होता है। बूढ़े होने के बाद इंसान बच्चो की तरह बरताव करने लगता है बूढ़े इंसान की अधिक लालसा नहीं होती बस उसे आपका थोड़ा समय, बातें और साथ मे भोजन करना बस यही उनकी इच्छा होती है। वह चाहते है की घर के सदस्य उनके साथ प्यार भरा व्यवहार करे। 


यह कहानी एक बूढी दादी की है, दादी का जीवन अपने अंतिम चरण मे था। दादी का व्यवहार एक छोटे बच्चे की तरह हो गया था, दादी थोड़ी थोड़ी सी बात पर रो देती थी। दादी की इतनी सी लालसा थी की उनको मन पसंद भोजन करने को मिले तथा उनके घर वाले उनसे बात करे। 

लेकिन दादी का दुर्भाग्य था की उनके बेटे और बहू के पास उनसे बात करने का भी समय नहीं था, बहू दादी को एक कमरे मे ही रखती उनका भोजन भी उन्हें वही दिया करती। एक दिन दादी को मीठा खाने का मन किया तो दादी ने अपने बहू से बोला की मुझे आज मीठा खाने का मान कर रहा है, तो बहू उन पे चीड़ गई और बहू ने दादी को बोला बुढापा आ गया पर आप अभी भी बहुत चटोरी हो, बस आपको तो खाने का ही सूझता है और बहू ने बहुत सारी जली कटी बाते भी सुनाई, मिठाई तो बना कर खिलाई नहीं, पर नमकीन जैसी बाते सुना दि। उतने मे दादी का बेटा आ गया और उसने अपनी पत्नी से पूछा की क्या बात हो गयी, पत्नी बोली आपकी माँ काम तो कुछ नहीं करती पर हम पे हुक्म चलाने को बात दो, तो बेटे ने माँ को बोला की आपको दो वक़्त का खाना मिल रहा है तो आप चुप चाप पड़े रहो, क्यों हमे परेशान कर रही हो। दादी चुप-चाप अपने कमरे मे जा कर रोने लगी और अपनी किस्मत को कोसने लगी, वह पुरानी बाते याद करने लगी की वह कैसे अपने बेटे की हर इक्छा पूरा करती थी। 

कुछ समाये के बाद दादी के बेटे-बहू ने घर पे सत्यनारायण की पूजा रखी, लेकिन दादी को बोला गया की आप इस कमरे से बहार मत आना। आज पूजा मे बहुत से लोग आयेंगे तथा आपको ऐसी हालत मे देखेंगे तो हमारी इज्जत कहा रहेगी। इस प्रकार दादी को कमरे मे बंद कर दिया गया, घर मे कई प्रकार के व्यंजन बने पर दादी को पूछने वाला कोई नहीं था। दादी की नाक मे व्यंजन की खुशबू उनकी भूख और बढ़ा रही थी पर दादी को खाना देने कोई नहीं आया, बिचारी दादी फिर से अपनी किस्मत को कोसती रह गई। 

कुछ समय के बाद दादी की मृत्यु हो गई, दादी के मृत्यु के उपरांत बेटे-बहू ने तेरवीं की पूजा (हिन्दू समाज मे मृत्यु के पश्चात् तेरवे दिन आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है और रिश्तेदारो और जान पहचान वालो को खाना खिलाया जाता है) करवाई और पूजा मे कई प्रकार के व्यंजन बनाकर गांव वालो को भोजन करवाया। पूजा मे आये लोग आपस मे बात करने लगे की कितना प्यार था इनको अपनी बूढ़ी माँ से की उनके अंतिम संस्कार पे इतना अच्छा भोजन खिलाया। 

यही हमारे समाज की विडम्ना है की जब तक इंसान जिन्दा है, उसकी सेवा तो हम अच्छे से कर नहीं पाते और मृत्यु के उपरांत उसकी आत्मा शांति के लिए कई प्रकार की पूजा तथा संस्कार के नाम पर समाज मे आडम्बर करते है। 

ध्यान दे: इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है की हमे अपने माँ-बाप की इच्छा को पूरा करना चाहिए और उनकी सेवा करना चाहिए, उनकी जिन्दिगी की हर ख़ुशी का ध्यान रखना चाहिए। मरने के बाद सामाजिक आडम्बर करना, तीर्थ यात्रा करना, कौवो (Crow) को भोजन करवाना आदि इन सब से कोई फायदा नहीं है, ये तो बस सामाजिक दिखावा है। बस इतना सा हमे समझ आ जाये तो कोई भी वृद्ध आश्रम नहीं खुलेगा।        








JOY'N'SUNNY









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